राजकुमार केसवानी
आजादी के साठ साल पूरे हो रहे हैं। विद्वानों के इस बात पर बहुत उच्च विचार हो सकते हैं, लेकिन मेरे मन में तो इस समय सि़र्फ एक बात आ रही है सो कहे देता हूं- मिले सुर मेरा तुम्हारा। पिछले 19 साल में देश में जब-जब कोई विचलित करने वाली घटना घटी है, मेरे कानों में यही महान रचना गूंज जाती है। दिल चाहता है, काश! यह गीत सारे लोगों के कानों में हर व़क्त गूंजता रहे। पापी के मन से पाप और अपराधी के मन से अपराध इस मार्मिक ध्वनि से, मेरा य़कीन है, धुलकर बह जाएगा।
आपको याद आया भी कि नहीं? या फिर मैं यूं ही किसी बूढ़े आदमी की तरह बड़-बड़ किए जा रहा हूं। जी हां, मैं बात कर रहा हूं 1988 में रची गई उस रचना की, जिसने कई साल तक हिंदुस्तानी दिलों की धड़कनों में संगीत भर दिया था- मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा।
हमारे देश के तीन महान गायकों, पंडित भीमसेन जोशी, डॉक्टर बालमुरली कृष्ण और लता मंगेशकर की हृदय को छू लेने वाली आवा़जें, दिलों के दरवा़जे खोलने को दस्तक देता संगीत, दिल की भाषा में ही लिखा गया गीत और इस सब को स्वीकार करने का आग्रह करते अमिताभ बच्चन, कमल हासन, मृणाल सेन, मारियो मिरांडा, प्रकाश पादुकोन, अरुण लाल, वैंकट राघवन, शबाना आ़जमी, वहीदा रहमान, शर्मिला टैगोर जैसी अनेक हस्तियां। लगभग 6 मिनट की यह रचना, मुझे लगता है, 500 साल तक मानव मन को झकझोरती रहेगी।
इस रचना के पीछे भी एक कहानी है। 1988 के उस दौर में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। वे भारत को 21 वीं शताब्दी में ले जाने के सपने में मगन थे, मगर देश के हालात, जो कि उस समय ठीक नहीं थे, उससे वे का़फी विचलित थे। उन्हें लगता था कि उनकी भाषा और अभिव्यक्ति वह जादू नहीं जगा पा रही, जिसकी वे अपेक्षा लेकर चले थे। वे राष्ट्र को एकजुटता का आह्वान करना चाहते थे। ऐसे में उनके सलाहकारों ने संगीतमय आह्वान का विचार रखा।
दूरदर्शन द्वारा इस प्रोजेक्ट की ़िजम्मेदारी विख्यात एड एजेंसी ओगिलवी एंड मेथर को सौंपी गई। उस समय संस्था के प्रमुख (स्व.) सुरेश मलिक को ब्रीफ दिया गया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक संगीत, लोक संगीत और मॉडर्न म्यू़िजक को गूंथकर अनेकता में एकता के तत्व को प्रवाहित करने वाले एक वीडियो गीत की रचना करनी है, जिसका प्रसारण 15 अगस्त, 1988 से दूरदर्शन पर होगा।इस एड एजंेसी के कंट्री हेड (डिस्कवरी एंड प्लानिंग) मधुकर सबनवीस के अनुसार (स्व.) सुरेश मलिक ने यह तय कर लिया कि गीत राग भैरवी में होगा और देश की विभिन्न भाषाओं को इसमें समाहित किया जाएगा। गीत की रचना के लिए अनेक ख्यातनाम गीतकारों से संपर्क किया गया, हर बार बात कुछ मÊा नहीं आया पर जाकर ़खत्म हो गई। तब यह कार्य कंपनी में ही कार्यरत एक युवा, लेकिन बहुत ही रचनाशील एकाउंट मैनेजर को सौंपा गया।
उसी युवा ने अपनी अठारह असफल कोशिशों के बाद, जब कहा- मिले सुर मेरा तुम्हारा तो ऑफिस में सब उछल पड़े। अब इन शब्दों को विस्तार देकर 13 भाषाओं में रूपांतरित किया गया। इस युवा एकाउंट मैंनेजर का नाम है पीयूष पांडे, जो आज विज्ञापन जगत में बेताज बादशाह की हैसियत रखते हंै। संगीत की ़िजम्मेदारी विख्यात संगीतकार लुई बैंक्स और (स्व.) पी वैद्यनाथन को सौंपी गई। आवा़जें भीमसेन जोशी, लता मंगेशकर और बाला मुरली कृष्णन और पर्दे पर उसे गाते विभिन्न क्षेत्रों के सितारे।
15 अगस्त, 1988 को प्रधानमंत्री के, लाल किले से राष्ट्र को संबोधन के बाद इस गीत का पहला प्रदर्शन किया गया। देखते-देखते इस गीत ने उस समय सारे देश को अपने जादू में जकड़ लिया। जब-जब देश में कोई विचलित करने वाली घटना होती है, जी चाहता है उस घटना में शामिल सारे लोगों को पकड़कर यह गीत सौ बार सुनाऊं। आप कहेंगे मैं अति कर रहा हूं। क्या करूं, संगीत के जादू में मेरा अटूट विश्वास है। और समाज जब बेसुरा हो रहा हो, तो बात सुर की ही जानी चाहिए। तो चलिए, इस बार सि़र्फ आÊादी की हीरक जयंती की आप सबको मुबारकबाद देकर कहता हूं, फिर मिलेंगे अगले हफ्ते। फिर से करने आपस की बात।
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